नेमाटोड वास्तव में भूमिगत होने और नग्न आंखों से दिखाई नहीं देने के कारण, अवसर उनकी उपस्थिति का पता नहीं चलता है। देखा जाए तो सुत्रकृमि एक ऐसा जीव है जिसका न तो श्वसन तंत्र होता है और न ही परिसंचरण तंत्र, इसी प्रकृति के कारण इसे फसलों का छिपा हुआ शत्रु कहा जाता है।
नेमाटोड एक ऐसा जीव है जो पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाता है और उसके पोषक तत्वों को चूस लेता है, जिससे पौधा पीला और कमजोर होकर सूख जाता है। जिससे पौधे अनावश्यक रूप से बीमार पड़ जाते हैं। पौधों की जड़ों से चिपककर पा जड़ों में प्रवेश करके सूत्रकृमि न केवल खाद्य पदार्थों के अवशोषण का मार्ग अवरुद्ध करते हैं बल्कि खाद्य पदार्थों को पोषण भी देते हैं। जिससे पौधे धीरे धीरे कमजोर होने लगते है. यदि इन्हें अपनी मनपसंद फसलें मिलती रहें तो कुछ वर्षों के बाद इनकी संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है। जब ये भूमि में पूरी तरह फैल जाते हैं, तब इनके उग्र रूप का पता चलता है। एक और खास बात यह है कि इनसे होने वाले नुकसान की मात्रा उनकी संख्या पर निर्भर करती है, यानी सूत्रकृमि की संख्या और उत्पादन में कमी के बीच सीधा संबंध होता है। इनसे पौधों की पैदावार में बड़ा फर्क पड़ता है।
नेमाटोड सब्जियों को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं ?
नेमाटोड सब्जियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से नुकसान पहुंचाते हैं। सूत्रकृमि के प्रकोप से न केवल सब्जियों का उत्पादन बल्कि गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। जैसा कि हमने अभी बताया कि ये पौधों की जड़ों में प्रवेश करके तथा जल एवं भोजन अवशोषण के मार्ग को अवरुद्ध करके उनकी वृद्धि को रोकते हैं। जिससे पौधे धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं।
अन्य हानिकारक रोग पैदा करने वाले जीव जैसे बैक्टीरिया, वायरस, कवक आदि भी इन घावों के माध्यम से पौधों में प्रवेश करते हैं और नेमाटोड के साथ मिलकर संयुक्त रोग या जटिल रोग पैदा करते हैं। जिससे फसलों के उत्पादन में घाटा दोगुना हो जाता है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में कभी-कभी फसल पूरी तरह नष्ट हो सकती है। सबसे ज्यादा नुकसान टमाटर, बैंगन, मिर्च, भिंडी, लौकी आदि सब्जियों को हुआ है।
पौधों में इसके लक्षण कैसे दिखाई देंगे जिससे हम पहचान सकें कि यह सूत्रकृमि का लक्षण है ?
सूत्रकृमि में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि सूत्रकृमि से प्रभावित पौधों में कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते, इसीलिए इनकी पहचान करना बहुत कठिन होता है और लक्षण भोजन, पानी की कमी तथा अन्य कारणों जैसे फसल खराब होने जैसे ही होते हैं। विकास में रुकावट, पीलापन, पत्तियों का अनियमित आकार, फूल और फल कम होना, छोटा आकार और समय से पहले झड़ना, दिन के समय पत्तियों का मुरझाना आदि नेमाटोड प्रभावित पौधों के कुछ लक्षण है।
सूत्रकृमि में कौन सा सूत्र कृमि सर्वाधिक हानिकारक है तथा इसका प्रकोप कब प्रारम्भ होता है ?
नेमाटोड संक्रमण सबसे हानिकारक जड़ गांठ सूत्रकृमि को दिखाई देने वाली जड़ गांठों से पहचाना जाता है जो जड़ों पर अनियमित आकार की गांठें बनाती हैं। इसके अलावा जड़ों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं जिससे जड़ों की जल एवं भोजन अवशोषण क्षमता कम हो जाती है और फसल दिन-ब-दिन कमजोर होती जाती है।
सब्जियों में सूत्रकृमि का प्रकोप नर्सरी से ही शुरू हो जाता है।
नेमाटोड का प्रबंधन और रोकथाम कैसे करें ?
सूत्रकृमि प्रबंधन के लिए सबसे पहले हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिस खेत में सूत्रकृमि का प्रकोप हो उस खेत में नर्सरी या पौधशाला का निर्माण न करें तथा आस-पास के खेतों में सूत्रकृमि को फैलने न दें।
सूत्रकृमि रहित पौधों का ही उपयोग करें इसके लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि नर्सरी सूत्रकृमि मुक्त हो। सूत्रकृमि की प्रजाति की पहचान सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि फसलों में सूत्रकृमि की विभिन्न प्रजातियाँ नुकसान पहुँचाती हैं। जड़ गांठ सूत्रकृमि या सूत्रकृमि मुक्त पौधे प्राप्त करने के लिए नर्सरी को कार्बोफ्यूरान 3 जी एवं 4 नामक रसायन से उपचारित करें। सक्रिय तत्व मात्रा/वर्ग मीटर के अनुसार 0.3 ग्राम कार्बोफ्यूरान का प्रयोग करें।
इसके साथ ही नर्सरी क्षेत्र को एक पारदर्शी पॉलिथीन शीट जिसकी मोटाई 20-25 माइक्रोन हो, से कम से कम 6-7 सप्ताह के लिए ढक दें तथा सूर्य तापन विधि (मृदा सौरीकरण) से उपचारित करें। इसके अलावा रोपण से कम से कम 1 घंटा पहले कार्बोसल्फान 25 ई.सी. 500 पीपीएम की मात्रा में जड़ों को शुद्ध (भिगोकर) कर लें। यदि खेत में उपचार करना हो तो कार्बोफ्यूरान 3जी रसायन 1.5 कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्व की मात्रा का प्रयोग करके सूत्रकृमि से होने वाली हानि को नियंत्रित कर उत्पादन किया जा सकता है।
क्या बिना रसायनों के भी नेमाटोड के प्रभाव को कम किया जा सकता है ?
रसायनों से बचाव की बात तो होती है, लेकिन आजकल रसायनों से स्वास्थ्य और पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भी बात हो रही है, तो क्या ऐसे कोई उपाय हैं जो स्वास्थ्य पर बुरा असर भी न डालें और नेमाटोड को भी नियंत्रित कर लें?
हाँ। इसके लिए अन्य उपाय भी हैं
1. इसके लिए हमारे किसान भाई गर्मियों में जब गर्मी अपने चरम पर होती है। मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करें और 15-15 दिन के अंतराल पर कम से कम तीन बार मिट्टी पलटें, तो सूत्रकृमि को नियंत्रित किया जा सकता है और उनसे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
2. इसके अलावा, उचित फसल चक्र जैसे फसल प्रबंधन उपायों को अपनाकर भी नेमाटोड से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। वास्तव में, नेमाटोड की विभिन्न प्रजातियां हैं जो विभिन्न फसलों पर परजीवी होती हैं, जैसे कि नेमाटोड का उपयोग सब्जियों पर किया जाता है, लेकिन अनाज की फसलों (गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा आदि) पर नहीं। इसी प्रकार, खाद्य फसलों पर लगने वाला नेमाटोड सब्जियों पर नहीं लगता है। इसलिए यदि किसान भाई 2- 3 वर्ष का फसल चक्र अपना लें तो सूत्रकृमि से होने वाले नुकसान को नियंत्रित कर सकते हैं।
3. 18-20 टन/हेक्टेयर की दर से जैविक खाद या अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग भी नियंत्रित किया जा सकता है।
4. जैविक नियंत्रण एक बहुत ही प्रभावी, सस्ता एवं प्रभावी तरीका है, इसके लिए किसान पौधों की वृद्धि में सहायक ट्राइकोडर्मा, पेसिलो माइसेस एवं राइजोबैक्टीरिया का उपयोग कर सकते हैं। बीजोपचार के लिए 10 से 20 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज पर्याप्त है तथा खेत उपचार के लिए 5-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
5. सूत्रकृमि प्रतिरोधी किस्मों को उगाकर किसान सूत्रकृमि से होने वाले नुकसान को कम कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।